भारत एक, कृषि प्रधान देश है। यहां फसलों और धरती के सम्मान में, कई त्योहार भी मनाए जाते हैं। बैसाखी भी उनमें से एक है। आज पूरा भारत इस त्योहार को मना रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि अलग-अलग जगहों पर, इसे अलग नाम से बुलाते हैं। पंजाब-हरियाणा में बैसाखी और असम में रंगोली बिहू कहा जाता है। पश्चिम बंगाल में, यह त्योहार, पोइला बैसाख के नाम से जाना जाता है, तो बिहार में इसे वैशाख कहते हैं और तमिलनाडु में इसे पुथंडु के नाम से जानते हैं। पंजाब में, बैसाखी मनाने का दूसरा कारण, खालसा पंथ की स्थापना भी है। साल 1675 में, गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म परिवर्तन से मना किया, तो मुगल बादशाह ओरंगजेब ने उन्हें मृत्यु दंड दे दिया। पिता की शहादत के बाद, गुरु गोबिंद सिंह जी राजगद्दी पर बैठे और सिखों के 10वें गुरु बने।
साल, 1699 की बात है। मुगल शासकों के अत्याचारों को देखते हुए, गुरु गोबिंद जी ने भी, लड़ने का निर्णय किया। यह वो दौर था, जब मुगलों की क्रूरता के आगे, कोई सिर उठाने की हिम्मत नहीं करता था। इसलिए, गुरु गोबिंद जी ने एक, सभा बुलाई और लोगों को कहा, मानवता के लिए कौन अपना शीष मुझे दे सकता है। पहले तो कोई आगे नहीं आया, लेकिन कुछ ही देर में, 5 सिख खड़े हुए। गुरु गोबिंद जी, एक-एक करके, उन पांचों को, तंबू में लेकर गए, और खून से सनी तलवार के साथ, अकेले बाहर आए। लोगों को लगा कि, गुरु गोबिंद जी ने सच में उनकी जान ले ली। लेकिन कुछ ही देर में, वो पांचों बाहर आए और इन्हीं 5 सिखों को ''पांच प्यारे'' कहा गया। ये पांच पुरुष, खालसा पंथ में शामिल होने वाले पहले व्यक्ति थे।
बैसाखी मनाने की वजह, चाहे कोई भी हो, लेकिन आज हर कोई नई शुरुआत और बेहतर भविष्य की उम्मीद के साथ, यह त्योहार मना रहा है। आज का यह दिन, हमारी सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करने और अपनी जड़ों से जुड़ने का समय है। द रेवोल्यूशन-देशभक्त हिंदुस्तानी की ओर से, आप सभी को बैसाखी की हार्दिक शुभकामनाएं।